बिक्रमगंज(रोहतास)-मैदानी भागों में हिरण एवं नीलगायों के झुंड(समूह) स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे है। जिससे रवि फसल को काफी नुकसान पहुंचा रहे हैं । किसानों को आर्थिक क्षति होने से इनकार नहीं किया जा सकता।
वन विभाग के निष्क्रिय कर्मियों के कारण हिरण , नीलगाय झुंडों में विचरण कर रहे हैं । वन विभाग के कर्मी हिरण, नीलगाय को पकड़ कर जंगल में छोड़ने में रहे असफल। किसान खेती की काम छोड़कर वन विभाग के दफ्तरों के चक्कर लगाना नदी में रेत गणना के सामान समझते हैं। सरकार ने वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 को देश के वन्यजीवों को सुरक्षा प्रदान करने एवं अवैध शिकार , तस्करी तथा अवैध व्यापार को नियंत्रण करने के उद्देश्य से लागू किया था। जनवरी 2003 में इसके अधिनियम को संशोधन कर सजा एवं जुर्माना कठोर बना दी गई। राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थापना 1986 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत किया गया था। इस अधिनियम में 1972 में 66 धाराएं हैं ।
मौलिक कर्तब्य-
——————————– अनुच्छेद 51/ ए (जी) के अनुसार वनों एवं वन्य जीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है।
वन्य जीव प्राणी-
—————————— हाथी, शेर, बाघ ,भालू, हिरण, नीलगाय, चीतल आदि वन्य जीव प्राणी की सूची में अंकित हैं।
मुआवजा का प्रस्ताव
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वन्य जीव प्राणी से फसलों के नुकसान होने पर किसान कृषि पदाधिकारी को अथवा वन पदाधिकारी को सीधे आवेदन कर सकते हैं ,जांच उपरांत प्रस्ताव मुआवजा मिल सकती है।
जीवों की बढ़ती संख्या —-
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मैदानी भागों में हिंसक जानवर यथा शेर, बाघ, लोमड़ी, गीदड़ की संख्या न होने के कारण हिरण एवं नील गायों की जनसंख्या में वृद्धि हो रही है।
किसानों का कथन-
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किसान अलखदेव राय, श्रीभगवान सिंह, सुदामा पांडेय, छठू शर्मा, रामपूजन धोबी आदि ने बताया कि जंगली जानवर निर्भय हो रवि फसलों को अपनी आहार करते हैं। तथा उसे रौंद कर काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इन्हें उन्मूलन को ले सरकार नीति बनाए। किसानों के समस्याओं को सरकार के समक्ष आकृष्ट कराने में प्रतिनिधि विफल।
आश्रय स्थल-
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अनुमण्डल क्षेत्र के विशाल मैदानी भू-भाग तथा इस क्षेत्र से गुजरने वाली सोन नदी, काव नदी की तलहटी में उगे झाड़ी वन्य जीवों का बना आश्रय स्थल।