मोहिउद्दीननगर/समस्तीपुर। श्रीमद् भागवत कथा में कथावाचक पं प्रशान्त जी महाराज ने भारत में मुगलों का आगमन हुआ तो महिलाओं को उनके कुदृष्टि से बचाने के लिए घूंघट प्रथा एवं बाल विवाह को प्रारम्भ किया गया। क्योंकि वैदिक काल में घूंघट का कोई स्थान ही नहीं था। परंतु अब आधुनिक समाज में सभी को उन्नति करने एवं प्रतिभा दिखाने का अधिकार होना चाहिए इसलिए प्रतिभा को घूंघट में न दबाएं। इस प्रकार कथा को आगे बढ़ाते हुए महाराज श्री ने बताया कि माया से किस प्रकार बचा जा सकता है। (वैदिक काल में घूंघट)
समुद्र या नदी-तलाब में जब मछुवारे मछलियां पकड़ने के लिये महाजाल फैलाते हैं तो मछलियां नदी में भागने लगतीं और महाजाल में फंस जातीं हैं। क्योंकि महाजाल का विस्तार बहुत दूर तक होता है, जिससे भाग कर बचने की उम्मीद करना व्यर्थ है। परंतु कुछ बुद्धिमान मछलियां होती हैं जो महाजाल से बचने के लिए नदी में ही मछुवारे के चरणों के पास जा कर छिप जातीं है जहां जाल नहीं होता है और वास्तव में एक मात्र वही बचने का स्थान होता है। महाराज जी ने आगे कहा कि मायापति भगवान विष्णु मोह-माया रूपी महाजाल संसार रूपी सागर में फैलाते हैं। जिसमें हम मनुष्य जाति फंसे रहते हैं परंतु स्वयं का हित चाहने वाले बुद्धपुरुष को ठीक उसी बुद्धिमान मछलियों की भांति मायापति भगवान विष्णु के चरणों का आश्रय लेना ही उचित है। मौक पर पं शंकर जी, सुरानंद जी,युगल किशोर सिंह, रमेश सिंह, संतोष सिंह, मनोज जी, मृत्युंजय सिंह आदि मौजूद रहें ।