पटना डेस्क: साल 2025 में विधानसभा का बिगुल बजने वाला है और उससे पहले लोकसभा चुनाव होंगे। जिसमें सीएम नीतीश कुमार इस बार बीजेपी को पटखनी देने के लिए बिल्कुल तैयार बैठे हैं और वह लगातार विपक्षी एकता को मजबूत भी करना चाहते हैं।
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एक रिपोर्ट के अनुसार इस महीने की शुरुआत में मोतिहारी में जहरीली शराब पीने से हुई 30 लोगों की मौत की घटना के बाद नीतीश कुमार थोड़े बैकफुट पर आए। अपने पुराने स्टैंड को संसोधित करते हुए वह पीड़ित परिवार को मुआवजा देने के लिए तैयार हो गए।
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हालांकि, बीजेपी ने जब विधानसभा में शराब पीने से मरने वाले लोगों के परिजनों के लिए आर्थिक मदद की मांग की थी तो नीतीश कुमार आगबबूला हो गए थे। उन्होंने भगवा पार्टी की मांग को सिरे से खारिज कर दिया था। हालांकि, महागठबंधन की सहयोगी आरजेडी जब विपक्ष में थी तो शराबबंदी कानून के खिलाफ मुखर होकर बोलती थी। शायद यही वजह है कि सत्ता परिवर्तन के बाद नीतीश कुमार का भी हृदय परिवर्तन हुआ है।
एक रिपोर्ट के अनुसार 10 अप्रैल को नीतीश कुमार की सरकार ने बिहार जेल नियमावली, 2012 में संशोधन किया। “ड्यूटी के दौरान लोक सेवक की हत्या” खंड को उन मामलों की सूची से हटा दिया, जिनके लिए सजा की अवधि में छूट पर विचार नहीं किया जा सकता है। सरकार के इस फैसले के बाद 27 कैदियों की रिहाई की सूचना जारी की गई है, जिनमें गोपालगंज के तत्कालीन डीएम की हत्या के दोषी आनंद मोहन सिंह का नाम भी शामिल था। सरकार के इस फैसले के बाद वह जेल से रिहा हो चुके हैं।
नीतीश कुमार की कैबिनेट ने बिहार लोक सेवा आयोग के माध्यम से नियुक्त शिक्षकों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने का फैसला किया है। इससे पहले 2006 से पंचायती राज संस्थाओं के जरिए नियुक्तियां होती थीं, जिसका राजद विरोध करता रहा है। नई नियुक्ति नीति से मौजूदा 4,00,000 नियोजित शिक्षक नाराज हो गए हैं। भाजपा और सरकार की सहयोगी भाकपा (मार्क्सवादी-लेनिनिस्ट-लिबरेशन) दोनों ही शिक्षकों के समर्थन में उतर आई है। बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने भी शिक्षकों को समर्थन देने का आश्वासन दिया है।
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इसी के साथ लोगों को उम्मीद है कि जिस तरह से सीएम नीतीश कुमार अब शराब पीने से जिन लोगों की भी मौत हो रही है, उनको मुआवजा दे रहे हैं। उसी को आगे बढ़ाते हुए वह जल्द शराबबंदी कानून को भी वापस ले सकते हैं।