अनुसूचित जाति से आने वाले राज्यपाल का अपमान कर रही सरकार : जनक राम
यहां के बुनकरों के कालीन की डिमांड अमेरिका, भूटान, थाईलैंड, चीन और नेपाल तक थी। बुनकरों के बुने कालीन का जलवा ऐसा था कि यहां के कालीन राष्ट्रपति भवन की शोभा बढ़ाने थे। इसके कारण वर्ष 1972 में ओबरा के बुनकर मोहम्मद अली को राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा गया। मगर वक्त के थपेड़ों और सरकार की उदासीनता ने यहां के कालीन उद्योग को धराशाई कर दिया। हालत यह हो गई कि वर्ष 1986 में स्थापित महफिल-ए-कालीन उद्योग अंतिम सांस गिनने लगा। वहीं अब शत्रुघ्न कुमार सिंह की मेहनत ने रंग दिखाया और इस उद्योग से लोग जुड़ने लगे। ओबरा के खराटी में उनके द्वारा स्थापित कालीन उद्योग के कारण पलायन करने वाले बुनकर अब धीरे-धीरे रोजगार प्राप्त करने लगे हैं। शत्रुघ्न सिंह ने औरंगाबाद के तमाम वैसे बुनकरों से अपील की है कि वह इधर-उधर ना भटके और अपने गांव की मिट्टी से जुड़कर कालीन उद्योग को पहचान दिलाने में अपनी अहम भूमिका निभाएं।