पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में अभी सात-आठ महीने का समय बचा है, लेकिन राजनीतिक दलों की सक्रियता चरम पर पहुंच चुकी है। महागठबंधन और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को इस बार तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने की पूरी उम्मीद है। इसके लिए उन्होंने जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए एक खास चुनावी रणनीति तैयार कर ली है।
जातीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में मुस्लिम आबादी 17.70 प्रतिशत और यादवों की 14 प्रतिशत है। ये दोनों ही आरजेडी के पारंपरिक वोट बैंक माने जाते हैं, जिससे पार्टी को करीब 32 प्रतिशत मत मिलने की उम्मीद है। हालांकि, भाजपा और उसके सहयोगी दलों को शिकस्त देने के लिए आरजेडी को अतिरिक्त छह-सात प्रतिशत वोटों का इंतजाम करना होगा।
इसी रणनीति के तहत लालू यादव ने दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) वोटों को साधने की कवायद शुरू कर दी है। उन्होंने आरएलजेपी नेता पशुपति कुमार पारस से गठजोड़ की तैयारी कर ली है, जबकि वीआईपी के मुकेश सहनी पहले से ही महागठबंधन का हिस्सा बन चुके हैं। कुशवाहा समुदाय को साधने के लिए भी आरजेडी प्रयासरत है।
प्रदेश युवा अध्यक्ष राजेश यादव की अध्यक्षता में बिहार प्रदेश युवा राजद की राज्य कार्यकारिणी की बैठक।
पिछले विधानसभा चुनाव में, जब लालू यादव जेल में थे, तब तेजस्वी यादव ने अकेले चुनाव का नेतृत्व किया और आरजेडी को 75 सीटों पर जीत दिलाई थी। महागठबंधन सरकार बनाने के बेहद करीब पहुंच गया था, लेकिन बहुमत से कुछ ही सीटें दूर रह गया। इस बार लालू यादव खुद चुनाव प्रचार में उतरेंगे, उनकी बेटियां मीसा भारती और रोहिणी आचार्य भी पूरी ताकत झोंकेंगी।
लालू यादव का एक ही सपना है— तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाना। उन्होंने नालंदा में अपने संबोधन के दौरान इसे दोहराते हुए कहा कि वे किसी भी हाल में तेजस्वी को बिहार की सत्ता तक पहुंचाने के लिए पूरी ताकत लगाएंगे।