दिनारा । किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा स्थान का परिचय जाने वगैर उसका वास्तविक महत्त्व नहीं समझा जा सकता है। इसलिये उसका महिमा मंडन न करे ।परिचय का बहुत बड़ा महत्त्व है। बिना परिचय का विश्वास नहीं होता और बिना विश्वास प्रेम संभव नहीं है। उपरोक्त बातें श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने खरवनियां में आयोजित लक्ष्मी नारायण महा यज्ञ में भागवत कथा के दरम्यान कहीं।
श्री जीयर स्वामी ने कहा कि अपना परिचय देकर अपने को बड़ा सिद्ध करने का महत्व नहीं है, बल्कि समाज के द्वारा परिचय दिये जाने का विशेष महत्व है। इसका सरल उदाहरण बैंक एवं न्यायालय आदि द्वारा स्वयं का समस्त प्रमाण देने के बावजूद पहचानकर्ता की माँग किया जाना है। उन्होंने कहा कि पद्मपुराण के उतराखंड के छठवें अध्याय में भागवत की महिमा बतायी गयी है। कथा सुनने, भोजन करने, शौच एवं शयन करने आदि सभी की अलग-अलग पद्धतियाँ हैं, जिसके अनुसार कार्य करने से जीवन सुखी एवं सफल रहता है। खड़ा होकर भोजन करना और जल पीना धर्म एवं विज्ञान दोनों से वर्जित है। उन्होंने कहा कि संत, गंगा, तीर्थ, चिकित्सक, विद्यालय एवं राजा के पास सबकों जाने का अधिकार है। ये समाज के होते हैं। उन्होंने कहा कि भागवत के प्रधान देवता श्री कृष्ण हैं। यह महाग्रंथ भगवान के वांड रुप का प्रतिमूर्ति है।

श्री कृष्ण के आदर्श एवं महत्त्व जीवन में आये इसीलिये वेद व्यास जी ने भागवत की रचना की। भागवत में सुत और सौनक संवाद है। सूत जी ने भागवत शुरु करने के पहले मंगलाचरण शुरु किया जो किसी भी शुभ आयोजन में भगवान के निमित्त प्रस्तुत है। आज भी मातायें हर शुभ मुहूर्त, शादी-विवाह मुंडन एवं अन्य पर्वो की शुरुआत भगवान एवं देवी-देवताओं की गीत से करती हैं। यही मंगलाचरण है। किसी भी अच्छे कार्य को शुरु करने या संकल्प लेने के पूर्व ईश्वर को याद करना या वंदना करना ही मंगलाचरण है। सत्य स्वरुप परमात्मा के अभाव में किसी की सत्ता नहीं होती। जिसकी सत्ता तीनों काल में स्थिर रहती है, वहीं सत्य है।
श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी ने कंहा कि आनन्द तीन प्रकार के होते हैं। ब्रह्मानन्द, विद्यानन्द और विषयानन्द गौतम वुद्ध से ब्रह्मानन्द की प्राप्ति होने पर सब कुछ त्याग दिया।। विद्यानन्द की अनुभूति समाज के लिये नई खोज और आविष्कार के क्रम में प्राप्त होती है। विषयानन्द सांसारिक विषयों के आनन्द से प्राप्त होती है। विषयानन्द के लिये अर्थ में वृद्धि, स्वस्थ शरीर, सुशील पत्नी, आज्ञाकारी पुत्र और अर्थोपार्जन के निमित्त विद्या का अध्ययन होना चाहिये। जिस परिवार में ये संयोग होते है, वह परिवार विषयानन्द प्राप्त करता है। कहा भी गया है, ‘पहला सुख निरोगी काया, दूसरा सुख घर में हो माया (प्रेम), तीसरा सुख सुलक्षण नारी, चौथा सुख पुत्र आज्ञाकारी । पाँचवाँ सुख स्वदेश में बासा, छठवाँ सुख राज में पासा। सातवाँ सुख संतोषी जीवन, ऐसा हो तो धन्य है।