मीडिया दर्शन/ पटना। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक दिमागी बीमारी है। यह एक डेवलपमेंटल डिसेबिलिटी है। उक्त बातें आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सुरेंद्र प्रताप सिंह ने विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस के अवसर पर शनिवार को भौगोलिक अध्ययन केंद्र द्वारा आयोजित संगोष्ठी में कहीं। उन्होंने कहा कि ऑटिज्म के लक्षण बचपन से ही नजर आ जाते हैं। यदि इन लक्षणों को समय रहते पहचान लिया जाए, तो बीमारी पर काबू पाया जा सकता है।
प्रो सुरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि ऑटिज्म सिर्फ पीड़ित बच्चे को ही नहीं बल्कि पूरे परिवार और समाज को दुखी कर देता है। ऐसा नहीं है कि इस बीमारी का इलाज असम्भव है। गर्भ में पल रहे बच्चे के मस्तिष्क की जांच करने से ऑटिज्म बीमारी का पता चल जाता है। इसकी पहचान के लिए सभी प्रसूता के लिए मुफ्त जांच की व्यवस्था होनी चाहिए। समाज को ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है। मौके पर उत्कर्ष सेवा केंद्र की सचिव डॉ मनीषा कृष्णा ने कहा कि सामान्य इंसान में दिमाग के अलग-अलग हिस्से एक साथ काम करते हैं, लेकिन ऑटिज्म में ऐसा नहीं होता। यही कारण है कि उनका बर्ताव असामान्य होता है। यदि ठीक से सहायता मिले तो मरीज की काफी मदद हो सकती है। उन्होंने कहा कि छोटे बच्चे हमारी भाषा नहीं समझते, लेकिन हाव भाव और इशारों को समझना शुरू कर देते हैं।
जिन बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण होते हैं, उनका बर्ताव अलग होता है। वे इन हाव भाव को समझ नहीं पाते या इन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देते हैं। ऐसे बच्चे निष्क्रिय रहते हैं। बच्चा जब बोलने लायक होता है तो साफ नहीं बोल पाता है। उसे दर्द महसूस नहीं होगा। आंखों में रोशन पड़ेगी, कोई छुएगा या आवाज देगा तो वे प्रतिक्रिया नहीं देंगे। थोड़ा बड़ा होने पर ऑटिज्म के मरीज बच्चे अजीब हरकतें करते हैं। प्रो कृष्णा ने कहा कि अधिकांश बच्चों में अनुवांशिक कारणों से यह बीमारी होती है। इसका इलाज आसान नहीं है। लेकिन, लाइलाज नहीं है। समय पर सही इलाज होने से बीमारी ठीक हो जाती है। बुनियादी केंद्र में ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के इलाज की व्यवस्था है। प्रदेश में 120 बुनियादी केंद्र संचालित हैं।
पीड़ित बच्चे का बिहेवियर थेरेपी, स्पीच थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी से शुरुआती इलाज होता है। जरूरत पड़ने पर दवा दी जा सकती है। बिहेवियर थेरेपी, स्पीच थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी का यही उद्देश्य है कि बच्चे से उसकी भाषा में बात की जाए और उसके दिमाग को पूरी तरह जाग्रत किया जाए। ठीक तरह से इन थेरेपी पर काम किया जाए तो कुछ हद तक बच्चा ठीक हो जाता है। कार्यक्रम के दौरान मरीवाला हेल्थ इनिशिएटिव संस्थान द्वारा ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के बीच चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन किया गया एवं उपहार का वितरण किया गया. ऑटिज्म से ग्रसित किशोर रौनक द्वारा अपनी पीड़ा की अभिव्यक्ति गीत प्रस्तुत कर किया गया. कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. राकेश कुमार सिंह, राज्य स्वास्थ्य समिति के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. सुनील कुमार, सुश्री प्रीति वाजपेयी, राज्य स्वास्थ्य समिति के मीडिया सलाहकार उत्तम ज्योति नारायण, परीक्षा नियंत्रक राजीव रंजन सहित अन्य शिक्षक, पदाधिकारी, कर्मी एवं छात्र उपस्थित थे.