पटना डेस्क: इन दिनों सोशल मीडिया पर ज्योति मौर्य की शादी, सक्सेस और लव स्टोरी सुर्खियों में है। एसडीएम पत्नी ज्योति मौर्य, सफाईकर्मी पति आलोक मौर्य और कथित प्रेमी होमगार्ड कमांडेंट मनीष दुबे के मामले को लेकर ऐसा कहने वालों की भी कमी नहीं कि ‘शादी के बाद अफसर बनने वालीं हर महिला ज्योति मौर्य जैसी नहीं होतीं’।
दरअसल, इस बात का एक उदाहरण उत्तर प्रदेश में SDM Dr. Bushara Bano भी हैं। इन्होंने तो शादी के बाद पति की मदद से न केवल पीसीएस बल्कि यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा तक क्रैक कर डाली थी। वो भी दो बार। डॉ. बुशरा बानो की मिसाल तो इस बात पर भी दी जा सकती है कि इन्होंने यूपीएससी पास करने के बाद पति व बच्चों के लिए भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और भारतीय रेलवे यातायात सेवा (IRTS) की नौकरी तक ठुकरा दी थी।
वहीं, एक मीडिया हाउस को दिए इंटरव्यू में एसडीएम बुशरा बानो अपनी सक्सेस स्टोरी के साथ-साथ ज्योति मौर्य के मामले पर भी बोलीं। कहा कि यह पूरी तरह से एक निजी मामला है। ज्योति मौर्य साल 2016 की पीसीएस अफसर हैं। उन पर लगाए गए आरोपों की जांच के लिए कमेटी बनी हुई है। मीडिया उनके पारिवारिक मसले पर ज्यादा ही दखल दे रहा है, जो उचित नहीं है।
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हालांकि, पीसीएस अफसर ज्योति मौर्य मैटर के बाद सोशल मीडिया पर पढ़ने को मिला कि 35 पतियों ने पीसीएस की तैयारी कर रही अपनी पत्नियों को घर वापस बुलाया। ज्योति मौर्य का केस सही है या गलत है। यह तो जांच में ही पता चलेगा, मगर उस एक मामले को लेकर सभी महिलाओं को टारगेट करना सही नहीं। पति-पत्नी का रिश्ता भरोसे पर टीका है। ऐसा कोई पहला मामला नहीं है। ऐसे भी कई मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें पुरुष अफसर ने अपनी पत्नी के साथ इस तरह का व्यवहार किया है। ज्योति मौर्य के मामले के आधार पर ‘बेटी बचाओ-बेटी पढाओ’ के नारे का भी गलत अर्थ निकालना मुर्खतापूर्ण है।