पीरो।तरारी प्रखंड नउवां गांव में आयोजित सत्संग महोत्सव में श्रीराम कथा प्रवक्ता डॉ०स्वामी रमेशाचार्य महाराज ने भरत पयोधि जैसे गंभीर विषय पर परिचर्चा करते हुए कहा-राम के वन गमन से पूर्व भरत रुपी समुद्र को नहीं समझा गया।श्री भरत ने माता पिता और गुरु के प्रेम को राम प्रेम के सामने तत्वहीन समझा।श्री भरत सबसे अधिक मर्माहत इस बात से थे कि महारानी कैकेई ने अपनी कुटिलता के द्वारा जिस स्थिति का सृजन किया था, गुरुदेव उसकी निंदा करते हुए भी उसी योजना को क्रियान्वित करने में सहायक बन रहे हैं। गुरु वशिष्ठ ने अपने भाषण का श्री गणेश कैकेई की आलोचना से ही किया था-प्रथम कथा सब मुनिवर बरनी/ कैकेई कुटिल कीन्ह जब करनी । आगे डा.स्वामी रमेशाचार्य ने कहा-माता पिता और गुरु को शिष्य के क्षमता के अनुसार ही उसे बोझ देना चाहिए।
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श्री भरत ने कहा-इससे बढ़कर विरोधाभासी स्थिति क्या हो सकती है कि एक ओर तो कैकेई की करनी को कुटिलता से भरा कहकर उसकी निंदा की जाए और दूसरी ओर शास्त्रों की दुहाई देकर उसे ही क्रियान्वित करने के लिए आदेश दिया जाय।भरत की दृष्टि में अयोध्या के राज्य सिंहासन के वास्तविक स्वामी रामभद्र हैं।इस तरह श्री भरत जहां समर्पण के सात्त्विक अहंकार से मुक्त हैं वहीं त्याग के नाम पर वे कर्त्तव्य-पथ से विरत भी नहीं होते।भरत ने राम को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया। माता पिता और गुरु सब राम के अधीन हैं। कार्यक्रम के संयोजक महंत श्री कृष्णदेवाचार्य जी महाराज हैं।