करगहर–आज देशभर में ईद उल अजहा (बकरीद)का पर्व मनाया जा रहा है. धू अल-हिज्जा के 10 वें दिन और इस्लामी कैलेंडर के 12वें महीने में इसे मनाया जाता है. ईद-उल फित्र के बाद मुसलमानों का ये दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है.इस मौके पर प्रखंड क्षेत्र के तमाम ईदगाहों और मस्जिदों में विशेष नमाज अदा की गई।पर्व को लेकर हर जगह कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी।
मस्जिदों में अदा की गई नमाज करगहर में बकरीद पर विशेष नमाज: करगहर ईदगाह, करगहर न्यू मस्जिद, सेमरी ईदगाह, रूपैठा मस्जिद, कौवाखौच मस्जिद, सहुआर मस्जिद, धनेज ईदगाह, बड़हरी ईदगाह, सहित क्षेत्र के सभी ईदगाह व मस्जिदों में मुस्लिम धर्मावलंबियों ने ईद उल जोहा की नमाज अता की. वैसे करगहर ईदगाह में नमाज सुबह के करीब 6:30,न्यू मस्जिद करगहर में सात बजे इस तरह प्रखंड के सभी मस्जिदों में अलग अलग समय में नमाज आदा की गई. यहां भारी संख्या में मुस्लिम धर्मावलंबियों के लोग ईद उल जोहा की नमाज पढ़ने को एकत्रित हुए। पर्व को लेकर सुरक्षा व्यवस्था की गई है. संवेदनशील स्थान भी चिन्हित किए हैं, जहां पुलिस प्रशासन की पैनी नजर है।
कब हुई बकरीद पर कुर्बानी की शुरुआत:– इस्लाम धर्म की मान्यता के हिसाब से आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद हुए. हजरत मोहम्मद के वक्त में ही इस्लाम ने पूर्ण रूप धारण किया और आज जो भी परंपराएं या तरीके मुसलमान अपनाते हैं वो पैगंबर मोहम्मद के वक्त के ही हैं लेकिन पैगंबर मोहम्मद से पहले भी बड़ी संख्या में पैगंबर आए और उन्होंने इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया. कुल 1 लाख 24 हजार पैगंबरों में से एक थे हजरत इब्राहिम. इन्हीं के दौर से कुर्बानी का सिलसिला शुरू हुआ.
तीन हिस्सों में बंटते हैं कुर्बानी के गोश्त:— हजरत इब्राहिम अस्सी साल की उम्र में पिता बने थे. उनके बेटे का नाम इस्माइल था. हजरत इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल को बहुत प्यार करते थे. एक दिन हजरत इब्राहिम को ख्वाब आया कि अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान कीजिए. इस्लामिक जानकार बताते हैं कि ये अल्लाह का हुक्म था और हजरत इब्राहिम ने अपने प्यारे बेटे को कुर्बान करने का फैसला लिया. हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और बेटे इस्माइल की गर्दन पर छुरी रख दी लेकिन इस्माइल की जगह एक बकरा आ गया. जब हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों से पट्टी हटाई तो उनके बेटे इस्माइल सही-सलामत खड़े हुए थे. कहा जाता है कि ये महज एक इम्तेहान था और हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकुम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे. इस तरह जानवरों की कुर्बानी की यह परंपरा शुरू हुई. बकरीद के दिन कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. एक खुद के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरा गरीबों के लिए.