पटना डेस्क: इस दुनियां में मां के लिए उसके बच्चे से बढ़कर दुनिया में कोई भी अनमोल चीज नहीं होती है. अपने बच्चे के चेहरे पर एक मुस्कुराहट देखने के लिए, उसके जीवन से दुख-दर्द को दूर करने के लिए एक मां कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहती है.
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इस दुनिया में मां और बच्चे का रिश्ता सबसे ज्यादा प्यारा, अनमोल है. मां की ममता की छांव के तले एक बच्चे का लालन-पालन होता है. बच्चे को जरा सी खरोच भी आती है तो मां का दिल परेशान हो उठता है. लेकिन, तब क्या हो जब एक मां की आंखों के सामने उसकी नन्ही सी जान की जिंदगी दांव पर लगी हो. कोई भी मां अपने बच्चे को हॉस्पिटल में नहीं देखना चाहेगी, लेकिन मेरठ की रहने वाली शालू को ये दिन देखना पड़ा. शालू ने अपने पांच महीने के बच्चे को पूरे 11 महीने वेंटिलेटर सपोर्ट पर जिंदगी की जंग लड़ते देखा. खुद भी रात-दिन हॉस्पिटल में रहकर उसका पेट भरने के लिए अपना दूध पिलाती रहीं. आखिर क्या है शालू की कहानी, जानते हैं आज मदर्स डे के उपलक्ष में यह स्पेशल कहानी खुद शालू की जुबानी.
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शालू कहती हैं, मेरे बच्चे का जन्म जब हुआ था तो उसका वजन लगभग साढ़े चार किलो था. उसका सिर भी नॉर्मल से अधिक बड़ा था, तो डिलीवरी कराने में काफी दिक्कत आ रही थी. ऐसे में प्रसव के समय उसे खींचकर बाहर निकाला गया, जिस वजह से उसकी गर्दन की हड्डी टूट गई थी. तब मेरी स्थिति भी बहुत नाजुक थी. मुझे खुद नहीं पता था कि हुआ क्या है. बच्चे के जन्म के बाद हम घर आ गए. छह-सात दिनों बाद हमने गौर किया कि वह अपना हाथ सही से नहीं हिला पा रहा है. धीरे-धीरे पता चला कि उसके हाथ में प्रॉब्लम है. कई बार तो सांसें भी मुश्किल से लेता था.
वहीं,
शालू कहती हैं कि वह अपने बच्चे की जान बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थीं. डॉ. दीपक और उनकी टीम ने मिलकर उसे एक नई जिंदगी दी है. यह सर्जरी लगभग 15 घंटे तक चली. चूंकि, इतनी कम उम्र में बच्चे की हड्डियां बहुत छोटी होती हैं तो इसलिए मेटल ट्रांसप्लांट करना मुश्किल होता है. ऐसे में रीढ़ को ठीक करने के लिए मैंने अपनी कमर से नीचे कूल्हे की हड्डी या इलियैक क्रेस्ट बोन (iliac crest bone graft) अपने बच्चे को देने के लिए तुरंत ही तैयार हो गई.