औरंगाबाद : बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बांधा है, प्यार के दो तार से संसार बांधा है..या ‘भइया मेरे राखी के बंधन को निभाना, भैया मेरे छोटी बहन को न भुलाना … सुमन कल्याणपुरी और लता मंगेशकर द्वारा गाया गया रक्षाबंधन का ये गीत भले ही ज्यादा पुराना न हो पर भाई की कलाई पर राखी बांधने का सिलसिला सदियों पुराना है, जो आज भी कायम है। आदि काल से चली आ रही इस परंपरा का निर्वहन करते हुए शुक्रवार को रक्षाबंधन के इस पावन पर्व पर हर बहन ने अपने भाईयों की कलाई पर राखी बांधकर अपनी रक्षा का वचन ली। जिला मुख्यालय समेत ग्रामीण क्षेत्रों तक भाई- बहन के प्रेम के प्रतीक रूपी पर्व रक्षाबंधन पर्व परंपरा पूर्वक मनाया गया। परंपरानुसार बहनों ने अपने भाई की कलाई पर राखी बांधी और भाई के सुखमय जीवन की कामना की। भाइयों ने भी अपनी बहन की रक्षा करने का संकल्प लिया ।युवतियों एवं महिलाओं द्वारा अपने भाइयों की कलाई पर अपनी मनपसंद राखियां बांधी गई और उन्हें तिलक लगाते हुए मिठाइयां खिलाई गई। बहना ने भाई की आरती उतारी। भाइयों ने भी अपनी बहन को कुछ न कुछ उपहार देकर बहनों की रक्षा का संकल्प लिया।
क्या है पौराणिक महत्व:
पंडित लाल मोहन शास्त्री ने बताया कि रक्षा बंधन का इतिहास हिंदू पुराण कथाओं में है। वामनावतार नामक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है। राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्न किया,तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी।वामन भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई। नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बाधकर उसे अपना भाई बना लिया। बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। वैसे लोगों में प्रचलित कुछ अन्य कथाएं भी हैं।

इंदौर की महारानी ने बांधा था नेपाल नरेश को रक्षा सूत्र:
पंडित शास्त्री ने बताया कि सबसे पहले प्रथम इंदौर के महारानी अहिल्याबाई ने नेपाल नरेश को रक्षा सूत्र बांधा था इसलिए नेपाल के हर शिवालय के शिवलिंग में प्रथम अहिल्या बाई की तरफ से शिवलिंग की पूजा होती है इंदौर की महारानी ने गया स्थित विष्णुपद मंदिर का निर्माण कराया था ।उन्होंने ही काशी विश्वनाथ मंदिर को पुनः स्थापना कराई थी।
यजमानों को बांधते थे रक्षा सूत्र:
पंडित लाल मोहन शास्त्री ने बताया कि श्रावण माह में ब्राह्मण वैदिक मंत्र का उच्चारण कर पाठ करते थे और उसके बाद यजमानों की मंगलकामना करते हुए रक्षा सूत्र अपने अपने यजमानों को बांधते थे।पर अब यह परम्परा धीरे धीरे लुप्त होता जा रहा है अब यह पर्व भाई बहन तक ही सिमट कर रह गया है।