पटना डेस्क: धर्मों में वैचारिक मतभेद जरुर हो सकते हैं, लेकिन इंसानियत व मानवता को ही श्रेष्ठ धर्म माना गया है। इंसानियत, मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण भी है, उसका धर्म भी और उसका कर्तव्य भी। साधारण शब्दों में विपरित परिस्थितियों और मुश्किलों में भी अगर कोई किसी के काम आए , किसी के दुखों में सहभागी बने तो उससे इंसानियत का जिंदा मिसाल कोई हो ही नही सकता। और तो और विपरीत परिस्थितियों के बाद भी किसी के दुखों के सहभागी बन अपने कर्तव्य बोध के लिए पहले की जज्बे और उमंग के साथ डटे रहे तो उस इंसान को राष्ट्र निर्माण पथ का अदभ्य पथिक कहने में कोई अतिशयोक्ति भी नही होगी।
बिहार के भाजपा का जाने माने चेहरा और दिनारा से दो – दो बार प्रत्याशी रह चुके राजेंद्र सिंह के साथ आज घटी एक घटना को लेकर आज ऐसी ही चर्चाएं हैं। विपरीत परिस्थिति आने के बाद भी उन्होंने अपना इंसानियत और कर्तव्य बोध को नहीं भुला। दुर्घटना में चोटिल होने और मानसिक रूप से पूरी तरह तैयार नहीं होने के बाद भी न सिर्फ दिनारा के लोगो के दुखों में शामिल हुए , बल्कि अपने पार्टी के बैठक में भी उसी जोश के साथ फर्ज को अदा की। हुआ यूं कि राजेंद्र सिंह अपने निजी गाड़ी से पटना से दिनारा के सहुआडी ग्राम में किसी के घर श्राद्धक्रम के तेरहवीं में शामिल होने आ रहे थे। इसी बीच बिहियां के समीप अचानक एक नीलगाय रास्ते में आ गई और उनके गाड़ी के टकरा गई। जिससे उनका का गाड़ी क्षतिग्रस्त हो गई और राजेंद्र सिंह भी चोटिल हो गए।
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हालांकि, ईश्वर का शुक्र था कि वे बाल बाल बच गए। तब उनके मन में पटना लौट आने ख्याल तो आया , लेकिन फिर उन्होंने खुद को विचार किया और निकल पड़े दिनारा का सहुआडी गांव। उन्होंने कहा कि जीवन में जो विपरीत परिस्थितियां आती रहती है। इससे हम अपने कर्तव्य से पीछे कैसे हट सकते हैं। दिनारा के लोगो ने जो मुझे स्नेह और प्यार दिया हैं , उसका तो ऋणी हैं ही और फिर थोड़ी सी परेशानियों के कारण हम इनके दुःख – दर्द का सहभागिता से पीछे कैसे लौट सकते हैं।
भाजपा नेता राजेंद्र सिंह के विपरीत परिस्थितियां होने के बावजूद दिनारा के प्रति समर्पित भाव से यहां के लोग अचंभित हैं। लोगों में काफी चर्चाएं हैं। लोग कहते हैं कि मुश्किल दौर में राजेंद्र सिंह ने इंसानियत का जो परिचय दिया हैं , उसकी जितनी सराहना की जाएं , कम है। अपने परिस्थिति में भी जो हमारे गम में सहभागी बने , उसका कोई बड़ा हमदर्द हो ही नही सकता। इतना ही नहीं , बड़ी बात तो यह है कि दिनारा में तेरहवीं में शामिल होने के बाद अस्पताल में इलाज कराने के बजाए उन्होंने अपने पार्टी के ग्रामीण बैठक के लिए बिहटा ( पटना ) निकल गए और बैठक भी की। राजेंद्र सिंह स्पष्ट कहते हैं , ‘ हमने राष्ट्र निर्माण में एक पथिक का रास्ता चुना हैं। फिर थोड़ी से मुश्किलें आने पर इससे कैसे मुकर सकते हैं। यह तो अपने कर्तव्य पथ का अपमान होगा। बात जो भी हो , पर भाजपा नेता ने जो इंसानियत के साथ अपना कर्तव्य बोध को परिभाषित किया हैं , एक अन्य नेताओं के लिए एक सीख हैं। लोगो से जुड़ाव में दिखावा नहीं होनी चाहिए। आप नेता हैं तो जनता के प्रति अपनापन और समर्पण का भाव ही आपकी छवि को प्रदर्शित करती हैं। आज राजेंद्र सिंह ने सच में एक वास्तविक नेता की छवि को प्रदर्शित किया। वैसी छवि … जिसमे राष्ट्र पथिक में जनसेवा की भूमिका स्पष्ट नजर आ रही हैं।