दाउदनगर (औरंगाबाद) : कुछ मन में ठान लिया जाय तो वह पूरा हो ही जाता है। खेती किसानी तो भारत की आत्मा है।जब डॉक्टर ने मशरूम खाने की सलाह दी तो फिर खुद ही इसे उपजा डाला।दाउदनगर के गया रोड निवासी अरुण मेहता तीन वर्षों से मशरूम की खेती कर रहे है। मशरूम बटन की खेती ने इनकी तकदीर बदल कर रख दी है।ये खेती ही नहीं कर रहे वे बेरोजगारों को नई राह भी दिखा रहे हैं।अरुण ने अपने घर के कमरे में ही आस्टर मशरूम की खेती करने की तैयारी कर ली। घर के कमरे में 50 से अधिक पॉलीथीन में मशरूम को लगा कर खेती शुरू की। आस्टर मशरूम की छत्ते की तरह खेती होती है।अरुण बताते हैं कि उनके पत्नी को डॉक्टर ने मशरूम खाने की सलाह दी तो उन्होंने खुद घर पर ही मशरूम की खेती शुरू कर दी। कम लागत में अच्छी आमदनी देख वे अपनी जॉब छोड़ इसी खेती में लग गए।वे पुणे के एक कंपनी में सॉफ्ट इंजीनियर के तौर पर कार्य करते थे।इंजीनियर की जॉब छोड़)
डॉक्टर ने दी थी सलाह:
बताते हैं कि शादी के दो तीन साल के बाद भी वे पिता व उनके पत्नी मां नही बन पा रही थी ।जिससे उनके परिवार चिंतित रहते थे। लोगो के राय पर वे पटना में एक महिला चिकित्सक से मिले।तो उन्होंने खान पान पर ध्यान देने को बोला,व ओएस्टर मशरूम खाने की सलाह दी।पर यह मशरूम उन्हें अपने क्षेत्र में नही मिल रहा था,तब उन्होंने खुद लगाने का निर्णय लिया। जब खेती करना शुरू किया तो फिर इसी में रम गए। आज घर पर ही मशरूम के अलावे घरेलू उधोग के तहत दिया बाती का भी कार्य शुरू कर दिया। अब ये दो बच्चों के पिता भी हैं।अब ये मशरूम की खेती का विस्तार रूप देने का कार्य शुरू कर दिया है।अब बड़े स्तर पर मशरूम की खेती करने की सोच लिए काम कर रहा है। वह अब बटन मशरूम, ढिगरी, मिल्की व दूध छत्ता जैसे मशरूम की कई प्रजातियों का उत्पादन करने को सोच रहें है।
सप्ताह भर में हो जाता है खाने योग्य:
अरुण बताते हैं कि मशरूम की खेती के लिए कमरे में नमी 80 से 85 तथा तापमान 15 से 23 डिग्री सेल्सियस के बीच होनी चाहिए।एक किलो मशरूम तैयार करने में बीस रुपए तक का खर्च आता है और एक माह का समय लगता है। उनके मुताबिक मशरूम के लिए सौ लीटर पानी में सौ एमएल फार्मालीन व साढ़े सात ग्राम कार्वेडाजीन का घोल तैयार करना पड़ता है। इस घोल में धान का पुआल या कुट्टी को बीस से पच्चीस घंटे तक डुबो कर रखना पड़ता है। बाद में कुट्टी को पानी से निथार कर पालीथिन बैग में तह लगाया जाता है। हर तह के बीच में मशरूम के बीज का छिड़काव किया जाता है। पन्द्रह दिनों में कवक जाल बनने पर पालीथिन को हटा कर बेड को प्लास्टिक जाली के सहारे टांग दिया जाता है। सप्ताह भर में खाने योग्य मशरूम तैयार हो जाता है।